नए रेलवे-IT मंत्री अश्विनी वैष्णव को आप भी जानिए:
नए रेल व आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव।
जोधपुर में सादगी से रहता है परिवार, अटलजी के PS रहे, 16 साल बाद छोड़ी IAS की नौकरी, पिता बोले- मंत्री बनाने से पहले मोदी ने लिया सब्र का इम्तिहान।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हमेशा ही अपने फैसलों से लोगों को चौंकाते रहे हैं। मंत्रिपरिषद के ताजा विस्तार में उन्होंने एक बार फिर अश्विनी वैष्णव जैसे कम चर्चित चेहरे को रेल व आईटी जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय की कमान सौंपकर सभी को चौंका दिया। अश्विनी वैष्णव का अचानक नाम सामने आने के बाद लोगों की जिज्ञासा है कि आखिर यह शख्स कौन है, जिस पर मोदी इतना भरोसा जताते हैं। वैसे वैष्णव को मंत्री बनाने की पटकथा मोदी ने बहुत पहले ही लिख दी थी। दो साल पहले ही उन्हें ओडिशा से राज्यसभा में लाया गया था। इस दौरान परदे के पीछे से सरकार के लिए महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते रहे।
IAS की नौकरी छोड़ने से पहले परिवार को नहीं बताया
बरसों की मेहनत के बाद कोई युवक IAS बन पाता है। वैष्णव का भी सपना था कि वे IAS बनकर अपना व पिता का सपना साकार कर सकें। वर्ष 1994 में उनका यह सपना साकार भी हो गया, लेकिन वैष्णव ने वर्ष 2010 में महज सोलह वर्ष की सेवा के बाद IAS की नौकरी त्याग दी। यह अपने आप में बड़ी बात थी। उनके छोटे भाई आनंद का कहना है कि नौकरी छोड़ने के बारे में उन्होंने कभी घर में किसी से चर्चा तक नहीं की। उनके फैसले के बारे में जानकर एक बार हमें भी लगा कि उन्होंने ये क्या कर दिया, लेकिन माता-पिता सहित हम सभी को विश्वास था कि उन्होंने बहुत कुछ सोच-समझ कर ही फैसला लिया होगा। हमेशा की तरह इस बार भी परिवार उनके साथ खड़ा था।
साल 1994 बैच के आईएएस अधिकारी वैष्णव को सबसे पहले बालासोर का डीएम बनाया गया था। वह नवीन पटनायक के करीबी और पसंदीदा अधिकारियों में से एक थे। इसलिए जब वह सीएम बने तो उन्हें सबसे पहले ओडिशा के महत्वपूर्ण शहर कटक का कलेक्टर बनाया गया था। यहां उन्होंने कई बदलाव किए, जिसमें कानून-व्यवस्था दुरुस्त करना भी शामिल है।
बता दें कि अश्वनी वैष्णव करीब 15 वर्षों तक कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक जिम्मेदारियों को संभाला और विशेष रूप से बुनियादी ढांचे में पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) ढांचे में उनके योगदान के लिए जाने जाते थे। इसके बाद इन्होंने जनरल इलेक्ट्रिक और सीमेंस जैसी प्रमुख वैश्विक कंपनियों में नेतृत्व की भूमिका निभाई है।
काफी पहले मिल चुके थे संकेत
उनके पिता दाऊलाल ने बताया कि बेटे को केन्द्र सरकार में अहम जिम्मेदारी मिलने के संकेत तो काफी पहले ही मिल चुके थे। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान उनके निजी सचिव की भूमिका में रहने के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में मोदी का वैष्णव से संपर्क हुआ। वे उनकी कार्यशैली से प्रभावित हुए। इसके बाद दोनों का संपर्क बना रहा। उनके बीच क्या बात होती थी, ये हमें नहीं पता। लेकिन कुछ तो ऐसा हुआ होगा, जिसके आधार पर उसने IAS की नौकरी त्याग दी। इसके बाद मोदी प्रधानमंत्री बन गए। वैष्णव कुछ प्रोजेक्ट से जुड़ गए।
मंत्री बनाने से पहले मोदी ने लिया सब्र का पूरा इम्तिहान
उनके पिता ने बताया कि अश्विनी को राज्यसभा में लाने के लिए मोदी व शाह की जोड़ी ने काफी मेहनत की। ओडिशा में भाजपा के पास पर्याप्त विधायक नहीं थे, लेकिन मोदी व शाह ने मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से बात कर स्पष्ट कहा कि हम उन्हें काम में लेंगे। ऐसे में वे मदद करें ताकि वैष्णव राज्यसभा में पहुंच सकें। 2019 में वे राज्यसभा सांसद बने। इसी से स्पष्ट है कि मोदी ने काफी पहले यह तय कर लिया था कि वैष्णव को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देनी है, लेकिन मोदी ने वैष्णव के सब्र का पूरा इम्तिहान लिया। नौकरी छोड़ने के 4 साल बाद मोदी प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन वैष्णव को उन्होंने 7 वर्ष तक इंतजार कराया। कहावत है कि इंतजार का फल मीठा होता है। वैष्णव के मामले में ऐसा ही हुआ। उनके सब्र का फल बेहद मीठा निकला और एक नहीं दो-दो महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी मिली।
जिंदगी में किस्से गढ़ने का समय ही नहीं मिला
अश्विनी के छोटे भाई आनंद ने बताया कि हमारा बचपन बेहद सादगी से गुजरा। पिता ने हमारी पढ़ाई के लिए अपना सब कुछ लगा दिया। ऐसे में एक ही ध्येय था कि जीवन में कुछ बन पिता के सपनों को पूरा कर सके। भाई शुरू से ही पढ़ने में होशियार थे। ऐसे में वे हमेशा अपनी किताबों से जुड़े रहे। ऐसा भी नहीं है कि दोस्त नहीं थे। जोधपुर में उनके बहुत से दोस्त हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि पढ़ाई के अलावा भाई के जीवन से जुड़ा कोई यादगार किस्सा है ही नहीं। उनके पास इतना समय नहीं था कि किस्सों का हिस्सा बन सके।
फुलेरा में है ससुराल
अश्विनी की पत्नी सुनीता फुलेरा की हैं। उनका एक बेटा राहुल व बेटी तान्या है। राहुल लंदन से एमबीए कर रहे हैं और तान्या भी वहीं से फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई कर रही है। कोरोना के चलते फिलहाल दोनों बच्चे उनके साथ दिल्ली में ही रह रहे हैं। माता-पिता के अलावा एक भाई आनंद पेशे से वकील हैं। दो बहनें भी हैं।
किताबों का है सबसे ज्यादा शौक
अश्विनी के भाई आनंद का कहना है कि भाई को सबसे ज्यादा शौक किताबें पढ़ने का ही रहा है। बचपन से किताबों के साथ जुड़ा उनका साथ अभी तक बरकरार है। वे कुछ न कुछ हमेशा पढ़ते रहते हैं। अपनी व्यस्तताओं के बीच समय निकाल पढ़ना नहीं भूलते।
परिवार के बेहद करीब
अश्विनी जब भी अपने माता-पिता से मिलने जोधपुर आते है तो उनकी दिनचर्या एकदम सामान्य रहती है। आनंद का कहना है कि कभी इस बात का अहसास तक नहीं हुआ कि उनका भाई आईएएस है। जोधपुर में उनका अधिकांश समय माता-पिता के साथ व परिवार के अन्य सदस्यों से बातचीत में ही निकलता है। वे सभी से काफी खुलकर बातें करते हैं।
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